सोमवार, 11 जनवरी 2010

शर्म करो जमशेदपुर पुलिस आम आदमी खतरे में है


कल जब जमशेदपुर के हर चौक चौराहों पर आर्म्स जाँच के नाम पर पुलिस जमशेदपुर में आम आदमी कों परेशान कर रही थी उसी समय बड़ी आराम से अपराधिओं ने शाम के .३० बजे टाटा मुख्य अस्पताल के चिकित्सक डॉक्टर आशीष रॉय कों बड़ी आराम से गोली मार दी और चलते बने यह घटना उस इलाके में घटी ज़हां पुलिस की चौकसी सब से ज्यादा रहती है। शहर में हत्याओं का दौर ज़ारी है मगर निक्कमी जमशेदपुर पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है कौन बताये इस पुलिस को की चौक चौराहों पर मोटरसाइकिल से चलने वाले आम आदमी कों रोककर पूछताछ करने से अपराध पर नियंत्रण नहीं होगा इसके लिए सकारात्मक पहल करनी होगी मगर कब एक मंज़र मैं आपकोबताता हूँ,अन्दर डी आई .जी बैठें हैं और शहर में हो रही अपराध की समीक्षा कर रहें हैं अचानक से एक लड़की सामने आती है " सर मुझे बचा लीजिये में एक लडके के चंगुल में फँस गयी हूँ अब वो मुझे ब्लैकमेल कर रहा है ,उसने मेरा सामाजिक जीवन बर्बाद कर दिया है में थाना गयी , डी एस पी के पास गयी एस पी के पास गयी मगर कोई करवाई नहीं हुई डी आई जी का ज़वाब चौकाने वाला था , तो में क्या करूँ आप थाना जाइए केस कीजिए तभी में कुछ कर सकता हूँ पागल लड़की, थाना से ही मामला निपट जाता . पुलिस कों १०,०००० रूपया देती लडके कों थाना में ला कर दम तक वही पुलिस मारती और मामला ख़त्म हो जाता ये है पुलिस का असली रूप आज एस पी नवीन कुमार सिंह परेशान हैं शहर में विधि- व्यवस्था चौपट है मगर लगाम नहीं लगा पा रहें हैं क्या कारण है? ज़ाहिर है की पुलिस में मुकुंद सिंह , शम्भू नाथ सहाय, मिथिला बिहारी शुक्ला,जैसे कुछ गद्दार और देशद्रोही लोग हैं जो पैसे के लिए किसी भी हद तक जा सकतें हैं आज पुलिस का रूप अपराधी से ज़यादा विकृत हो चला है , डॉक्टर प्रभात कुमार मारे गए एक हफ्ता नहीं हुआ की तुषार बागडिया मारा गया , इन्दर पाल सिंह मारा गया , डॉक्टर आशीष रे पर गोली चली ये सब इस स्टील सिटी की जाने पहचानी हस्तियाँ थीं फिर आम आदमी की क्या औकात ? आखिर कौन है जो इस शहर को जला देना चाहता है और पुलिस क्यों इस पर लगाम नहीं लगा पा रही है ज़ाहिर है की अपराधी या तो पुलिस से ज्यादा चालाक है या कुछ पुलिस वाले उन लोगो से मिले हुए हैं जो एस पी कों भी गुमराह कर रहें हैं नवीन कुमार सिंह एक्शन पर यकीन करने वाले व्यक्ति हैं मगर इन अपराधिओं के आगे उनकी भी नहीं चल रही है ज़ाहिर है उनको अपने विभाग के लोगो का सहयोग नहीं मिल रहा है। अगर ऐसा है तो इस शहर का भगवान् ही मालिक है आज परवेज़ हयात , रविन्द्र कुमार , डॉक्टर अजय कुमार बड़ी याद रहें है ये वही आई पी एस हैं जिनलोगों ने अपनी कार्यशेली से इस शहर कों अपराधमुक्त किया था ऐसा नहीं है की आज काबिल पुलिस ऑफिसर नहीं हैं मगर शायद या तो वो काम नहीं करना चाहते या काम से दूर कर दिए गए हैं अब लाख टके का सवाल यह है की क्या होगा इस शहर का , क्या लोग यूं ही मारे जाते रहेंगे , पुलिस से तो होने से रहा तो आम आदमी की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा ? सब से बड़ी बात है की पुलिस अपराधिओं तक पहुँच नहीं पाती उस से पहले ही एक नयी वारादात हो जाती है आखिर कब तक चलेगी ये खून की होली ?.......................................इसका ज़वाब शायाद किसी के पास भी नहीं है एक मीडिया पर्सन होने के नाते मैं परेशान हूँ और सोचने कों मजबूर भी की आखिर पुलिस-अपराधी गठबंधन से नुकसान किसका है ...........समाज का क्यों नहीं पुलिस ईमानादारी से अपना काम करती और ये सोचती है की वो भी इसी समाज का एक हिस्सा है खैर कभी तो सोचेगी ................मगर तब तक देर हो जाए

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