रविवार, 6 सितंबर 2009

आरुशी तलवार हत्याकांड और सी बी आई की भूमिका



नॉएडा का बहुचर्चित आरूषी तलवार ह्त्याकाण्ड एक बार फिर चर्चा में है मगर किसी रहस्य पर से परदा उठाने को ले कर नही बल्कि सी बी आई की नकारात्मक भूमिका की वज़ह से देश की सर्वोच्च जांच एजेन्सी का यह रूप गले नही उतरता ज़ाहिर है की सबसे निष्पक्ष माने जाने वाली यह संस्था सत्ता के हाथ का खिलौना बन चुकी है जिसे सत्ताधारी दल जब चाहे बंदर की तरह नचाते रहतें हैं कितने आश्चर्ये की बात है की आरुशी हत्याकांड मैं शुरू से ही कोताही बरती गयी और जब मामला केन्द्रीय जांच ब्यूरो को सौपा गया उसके बाद भी इसमें कोई कमी नही आयी। आज जब जांच पूरी हो चुकी है तो यह बात सामने रही है की उसके साथ यौन दुर्व्याभार हुआ की नही इसे जांचने के लिए उस समय प्रयोगशाला को शरीर के तरल पदार्थ का जो नमूना भेजा गया था वो किसी और महिला का था आरुशी के हत्यारों का सी बी आई भी पता नही लगा पाई और अगर लग भी गया की ऊसकी हत्या किसने की थी तो सबूत के आभाव में सभी हत्यारों को राहत मिल जायेगी अब लाख टके का सवाल ये है की इस जांच में सी बी आई से चूक हुई है या जान बूझ कर उसे अपना काम करने से रोका गया है केओंकी यह इतना कठिन और उलझा हुआ केस नही था की सी बी आई जैसी जांच एजेन्सी को हत्यारों का पता लगाने में कोई कठिनाई होती मगर ऐसा हुआ नही चिंता का विषय है केओंकी सी बी आई के अधिकारी इस बात के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किए जातें हैं की वो बिना किसी दवाब के अपना काम ईमानादारी से कर के दोषिओं को सजा दिलवायेंगे चाहे वो कितना भी प्रभावशाली वयक्ति केओं हो मगर आज इस एजेन्सी की परिभाषा बदल चुकी है अब उसी को सजा मिलेगी जो पॉवर मैं नही है पॉवर मैं रहने वालो का कोई कुछ भी नही बिगाड़ सकता कहने की ज़रूरत नही की जांच एजेन्सीओ का काम सिर्फ़ जांच तक ही सीमित नही होता जांच कर सबूतों के साथ अपराधी को उसके अंजाम तक पहुंचाना भी होता है मगर यहाँ तो जांच ही सही ढंग से नही हुई अपराधी अंजाम तक क्या ख़ाक पहुचेंगे हम एक समाज मैं रहतें हैं जिस पर कानून का नियंत्रण होता है और कानून की हुकूमत तभी कायम रह सकती है जब अपराधिओं में उसका खौफ हो और लोगो को उस पर भरोसा खैर ये तो मामले का एक पहलू है अब ज़रा देखिये मीडिया की भूमिका को मीडिया भूल गयी की हम भारतीय समाज मैं रह रहें है जहाँ किसी लड़की की इज्ज़त को ढंका जाता है उसे सरे आम नीलाम नही किया जाता मगर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस हत्याकांड को सनसनीखेज़ कथा में तब्दील कर दिया ज़रा सोचिये और अंदाजा लगाईए तलवार दंपत्ति को कितनी जिल्लत झेलनी पड़ी तिस पर भी उन्हें इन्साफ नही मिला एक घर एकलौते बच्चे के असमय जाने से कैसे टूटता है इश्वर करे की किसी को इस पीड़ा को महसूस करना पडे मगर आज आरुशी की आत्मा ज़रूर इन्साफ के लिए तड़प रही होगी और हंस रही होगी इस कानून का पालन और इन्साफ के नाम पर किए जाने वाले ढोंग को देख कर क्या कर सकते है हम उस देश मैं रहते हैं जहाँ कहने को तो लोकतंत्र है मगर उपर से नीचे तक गूंगो और बहरों की फौज बैठी है जिनकी डोर किसी और के हाथ मैं है सी बी आई की हालत भी वही है अब वो जांच एजेन्सी हो कर सत्ताधारी पार्टी के हाथो का खिलौना बन बैठी है । शायद यही कारण है की अब सी बी आई जांच की बात सुन कर बजाए खौफजदा होने के लोग बडे आराम से कह देतें हैं .....................अरे कोई ख़ास बात नही आराम से बच जायगा । आज आरुशी के लिए अफ़सोस हो रहा है और दिल मैं एक बात उठ रही है काश मीडिया और सी बी आई ने अपनी भूमिका सही ढंग से निभाई होती तो आरुषि को इन्साफ मिल गया होता । एक मीडिया पर्सन होने के नाते यह कहने मैं मुझे कोई संकोच नही की ........................ हमे माफ़ करना आरुषि तलवार कही हममें कोई कमी रह गयी

बुधवार, 25 मार्च 2009

जमशेदपुर पुलिस का वीभत्स चेहरा

कल रात जमशेदपुर पुलिस के आरक्षी उपाधीक्षक तेजवान उराँव और पुलिस के सीपाहीओं ने जमशेदपुर के पुराने अखबारों में एक चमकता आइना के संपादक ब्रजभूसन सिंह के साथ मारपीट और लूटपाट किया इससे पुलिस का वीभत्स चेहरा खुल कर सामने गया है मीडिया वालों के साथ पुलिस का यह सलूक है तो आम जनता का क्या हाल होता होगा बोलने की ज़रूरत नही है पुलिस शब्द का मतलब होता है पुरुषार्थयुक्त , लिप्सराहीत , सेवक मगर ऐसे भ्रस्थ पुलिसवालों ने पुलिस शब्द के मायने ही बदल दियां हैं इस पर भी पुलिस अधीक्षक की खामोशी गले नही उतरती निष्पक्ष पत्रकारिता कुर्बानी. मांगती है मैने पुलिस अपराधी गठबंधनके बहुत अत्याचार सहे हैं इसलिए यह बात बड़ी बेबाकी से कह सकता हूँ असल में पुलिस अत्याचार को रोकने के लिए कोई माकूल कानून ही नही बना है अगर कोई पुलिस वाला आप पर अत्याचार करता है तो आप एस पी को शिकायत करेंगे और उसकी जांच कोई कनीय पुलिस अधिकारी करेगा और अत्याचार करने वाला साफ़ बच जायगा यह होता रहा है और होता रहेगा जबकि होना यह चाहीये की जांच रिपोर्ट आने के बाद उसके तकनीकी पहलुओं को देख कर के निष्कर्ष निकला जाए और यदि अधिकारी दोषी पाया जाए तो उस पर अपराध के हिसाब से कानूनी धाराओं के तहत प्राथमीकी दर्ज की जाए देखिये पुलिस जुल्म कैसे नही कम होगा , कानून का शिकंजा जब कसता है तो अच्छे -अच्छे सुधर जातें हैं। झारखण्ड को ज़रूरत है प्रकाश सिंह जैसे डी जी पी की फिर देखिए पुरा तंत्र कैसे सुधरता है जब एक शिक्षित आदमी पुलिस के हाथों तंग होता है तो उसके खिलाफ अपनी लड़ाई कलम के माध्यम से लड़ता है मगर गरीब और कम पढ़ा लिखा लाचार आदमी अपराध का रास्ता अख्त्यार करलेता है मुझे यह कहने में कोई संकोच नही की पुलिस जुल्म भी एक कारण है जिसके कारण अपराधी जन्म लेतें हैं महज़ कुछ रुपयों के लिए यह पुलिस वाले आम आदमी को किस तरह तंग करतें हैं झूठे मुकदमों में फसाते हैं यह मुझसे ज़यादा कौन जान सकता है ? पुरी व्यवस्था कुरुछेत्र है और ज़रूरत है फिर से एक कृषण की, नए युग की स्थापना की मैं जानता हूँ की ब्रजभूसन सिंह पर किया गया यह हमला पुलिस माफिया गठबंधन की हीकरतूत है मगर साथ ही यह भी जानता हूँ की उनको कोई भी शक्ति अपने कर्तव्य पथ से नही हटा सकती मुझे उनपर गर्व है और सारे पत्रकारिता जगत को होना चाहिए इस हमला ने एक बार फिर कलम की ताकत को सिद्ध किया है मैं यह जानता हूँ की उनकी तारीफ बहुत से लोगों को अच्छी नही लग रही होगी मगर मुझे कड़वा सच बोलने की आदत है अपने को रोक नही पाता अभी परीक्षा की घड़ी है केओंकी यह पूरे पत्रकारिता जगत पर हमला है इसलिए हर पत्रकार को चाहिये की आपसी मतभेद भुला कर अपनी ताकत का इन लोगों का एहसास करा दे। केओंकी अब देश आज़ाद है और पुलिस जनता की नौकर है , उसे अपनी औकात का एहसास करना ही होगा

रविवार, 22 मार्च 2009

मेरे पसंदीदा आई . पी . एस. अधिकारी श्री रविन्द्र कुमार और परवेज हयात

निष्पक्ष पत्रकारीता के इस महासंग्राम की शुरुआत मेरे पिताजी ने सन १९९० में किया था पुलिस ओर अपराधी गठजोड़ के ख़िलाफ़ मिथिला बिहारी शुक्ला एक दरोगा हुआ करता था उसने पुलिस की वर्दी पहनी ही थी नाज़याज़ कमाई करने और शरीफ लोगों को परेशान करने के लिए मीडिया का उस समय जादूगोड़ा में कोई प्रभाव नही था और वैसे भी जादूगोड़ा मुर्दों की बस्ती है उस नामाकुल दरोगा का हर दुकानदार से उसकी कमाई का प्रतिशत की रंगदारी बंधी हुई थी क्या मजाल की कोई कुछ बोल दे हाज़त में बंद कर के बहुत मारता था मेरे पिताजी से भी हराम की कमाई करना चाहा पिताजी ने उसके फरमान को ठुकरा दिया बस शुरू हुआ गुंडों के साथ परेशान करने का सिलसिला अति हो गयी पिताजी को लगा की अब इसके अत्याचार का अंत करना चाहिए बस उदितवाणी अखबार के मध्याम से उसकी काली करतूतों को प्रकाश में लाना शुरू किया महीने में जनाब कई बार लाइन हाज़िर हुआ और फिर उसके अत्याचार से परेशान जादूगोड़ा के डोरकासाईँ गावों के लोगों ने उसकी बेटी पत्नी और भाई के साथ शुक्ला की जम कर पिटाई कर दी इस दारोगा को उसकी करतूतों की सजा तात्कालीन आई पी एस अधिकारी श्री रविन्द्र कुमार ने दिया वो उस समय जमशेदपुर के एस पी थे मैं दिल से उनका धन्यवाद करता हूँ वो जब तक जमशेदपुर में रहे गरीबों को पुलिस से डर नही लगा मेरे दुसरे पसंदीदा आई पी एस अधिकारी हैं श्री परवेज़ हयात साहब जिन्होने जमशेदपुर को अपराधमुक्त करने में अहम् भूमिका निभाया हाँ उनपर चंद स्वार्थी तत्वों ने जातिवाद का आरोप लगाया मगर मैं उस बात को नही मानता केओंकी मैं जानता हूँ की अच्छे काम करने पर स्वार्थी तत्वों को तकलीफ तो होती ही है वो मेरा खूब उत्साह बढाते थे मुझे याद है की जादूगोड़ा थाना का एक मुंशी जिसका नाम एम् एम् आलम था एक बार किसी से ५०/- रुपये की रिश्वत मांग लिया था संयोग से हयात साहब जादूगोड़ा एक कार्यक्रम मैं आए हुए थे उन्हें पता चला और उन्होने ख़ुद जांच कर तुंरत उस मुंशी को लाइन हाज़िर कर दिया पत्रकारों ने भी उनके कार्यकाल में बहुत सम्मान पाया वज़ह उनकी निष्पक्ष कार्यशैली रही , जिसका मैं कायल हूँ और हर आदमी को होना चाहिए आज इन दोनों अधिकारीओं ने अपने काम की बदौलत अपनी अलग पहचान बनाई है

शनिवार, 21 मार्च 2009

मेरे मार्गदर्शक

अपनी सफलता की कहानी मैं मैं उन नायकों को कभी नही भूल सकता जिन्होने मुझे मुसीबतों से लड़ने की प्रेरणा दी और जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा मेरी सहायता करते रहे डॉक्टर हारुन रशीद खान और वी श्रीनिवास राव यह ऐसे नाम हैं जो मेरी जिंदगी मैं बहुत कम समय के लिए आए मगर कभी खत्म होने वाला रिश्ता बना गये ।यह दोनों वयक्ति परमाणु उर्जा केंद्रीय विद्यालय जादूगोड़ा के प्राचार्य थे अनुशासन के पक्के शायद इसलिए तानाशाह के नाम से मशहूर ,मगर उनको तानाशाह कहने वाले लोगों से मैं यह हमेशा पूछता रहूँगा की कोई एक काम बता दें जिससे उन लोगों ने अपना भला किया हों किसी के पास जवाब नही है साफ़ बात है की एक अच्छा प्रशाषक हमेशा ही बुरा होता है डाक्टर खान वो पहले शख्श हैं जिन्होने मुझे हमेशा अपने सिद्धांतो के साथ आगे बढ़ना सिखाया और मुझे अनुशासन की वो गूढ़ बातें सिखाई जो आज तक मुझे याद हैं और सम्मान दिला रहें हैं वी श्रीनिवास राव सर से मेरा परिचय सन २००४ मैं हुआ था वो युवा हैं और धुन के पक्के और काम के प्रति ईमानदार भी जब मैं परेशान होता तो उनके पास पहुँच जाता था और वे सारा काम छोड़कर मेरी समस्या का समाधान करते थे उन्होने मुझे सिखाया की परेशानी को मेहमान की तरह समझो केओंकी वो आती ही जाने के लिए है केवल अपने लक्ष्य पर नज़र रखो और अपना काम पुरी निष्ठा से करते जाओ बुरे लोग तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ सकते।आज मैं इस सिद्धांत की शक्ति को मानता हूँ इन दोनों गुरुओं ने कभी मुझे पढाया नही पर आंशिक रूप से जो बातें सिखा दिया वो मेरी शक्ति बन गया इसके लिए मैं इनका आजीवन ऋणी रहूँगा इनलोगों ने इस बात की सार्थकता को सिद्ध कर दिया की अनुशाशन ही व्यक्ति और समाज को सफल बनता है

शुक्रवार, 20 मार्च 2009

निष्पक्ष पत्रकारिता एक धर्मयुद्ध है सामाजिक समस्या के खिलाफ

निष्पक्ष पत्रकारिता एक धर्मयुद्ध की तरह है जो मजबूत संकल्प के हथियार से लड़ा जाता है मैने तो अपने कार्य के इस छोटे से कालखंड मैं यही अनुभव किया है केओंकी मैं बहुत धनी वयक्ति नही था मगर मेरे पास आत्मविश्वास है और वही मेरा हथियार भी धर्मयुद्ध मैं व्यक्ती हमेशा अकेला ही होता है और उसका साथी सिर्फ़ एक होता है वही शक्ति जो इस संसार को चला रही है यह मैं नही कह रहा हूँ समय और युगों ने इस बात को हमेशा ही सिद्ध किया है महाभारत की ही बात ले लीजिये पांडवों के पास क्या था द्रीढ़ संकल्प और भगवान श्री कृषण और उन्होने इतना बड़ा महासमर जीत लिया। यह बातें मुझे अक्सर श्री नीतीश भारद्द्वाज़ जी कहा करते थे जब वे जमशेदपुर के सांसद हुआ करते थे और उनके जमशेदपुर प्रवास पर मैं उनके पास जाया करता था पता नही क्या कारण था की वो मुझे बहुत स्नेह देते थे वाकई वो विद्द्वान वयक्ति हैं मैं इस बात को मानता हूँ केओंकी श्रीमद भगवत गीता की अधिकतर बातें मैने उन्ही से सुना और अपने जीवन उतारा जो मेरी सफलता का कारण बना मेरी पत्रकारिता का उद्देश्य कभी किसी को नुकसान पहुचना नही रहा बल्कि मैने यही चाहा की मैं जिस बुराई को प्रकाश मैं ला रहा हूँ वो खत्म हो जाए और बुराई फेलाने वाले सही रास्ते पर जाएँ कई बार मुझे सफलता मिली एक घटना का उदाहरण मैं यहाँ दे रहा हूँ :- जादूगोड़ा मैं एक विद्यालय है परमाणु उर्जा केंद्रीय विद्यालय जो यूरेनियम कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड द्वारा संचालित किया जाता है जिसमे केवल कंपनी कर्मचारी और अधिकारी के बच्चे ही पढ़ते हैं। इस स्कूल में सन १९९६ में टयूशन की प्रथा बड़ी जोर शोर से चल रही थी यह सब चलाया जा रहा था तत्कालीन प्राचार्य पुजारी दुबे के वरदहस्त से केओकी शिक्षक बच्चों पर ज़ोर डाल कर जबरदस्ती उनको अपने यहाँ टयूशन पढ़ने के लिए बुलाते थे और मोटी रकम वसूल करते थे कुल कमाई थी २२ लाख रुपए और इसका हिस्सा प्राचार्य महोदय को भी जाता था कोई था नही जो इस अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठता यहाँ तक की शोषित होने वाले छात्र- छात्राओं के माता पिता भी नही और मैने एक और पंगा ले लिया मैने एक बार टयूशन से सम्बंधित एक समाचार आवाज़ समाचार पत्र में टयूशन प्रकाशीत कर दिया बस क्या था भूचाल गया केओंकी जादूगोड़ा में दो चिरकूट हैं बिद्या शर्मा और अरुण सिंह ख़ुद को पत्रकार बोलते हैं मगर ज्यादा समय थाना की मुखबीरी और असामाजिक अराज़क तत्वों की चमचागीरी में बीतातें हैं इन लोगों ने शिक्षकों को आश्वस्त कर रखा था की कोई भी अखबार इनके खिलाफ समाचार नही प्रकाशीत करेगा इसके लिए वे शिक्षकों से एक निश्चित रकम लिया करते थे मगर जब समाचार अखबार मैं गया तो लाजिमी था की उनके आका नाराज़ हुए अरुण सिंह को मुझे सबक सिखाने का ज़िम्मा दिया गया और उसने किसी तरह आवाज़ अखबार में नौकरी पकड़ लिया और फिर उसने कई बार मेरे समाचार को रोकने का प्रयास किया मगर कहतें हैं की सच को दबाया जा नहीं सकता वही हुआ वो जितना मेरी बुराई करता संपादक महोदय मुझे उतना ही प्रोत्साहीत करते अंततः मैने अपने उसे औकात का एहसास करा ही दिया और फिर उसे आवाज़ अखबार ने निकाल दिया यह मेरी जीत थी . १९९९ में परमाणु उर्जा शिक्षा संस्थान मुंबई के अद्ध्यक्ष किरण दोसी जादूगोड़ा आए और मैने उनसे साक्षात्कार के दौरान सारी बातें भी कही और उन्होने तत्काल टयूशन को प्रतिबंधित कर दिया सामाजिक बुराई के खिलाफ यह मेरी सबसे बड़ी जीत थी मेरे विरोधिओं ने भी मेरी तारीफ किया इस वाकये मैं मजे की बात यह हुई जब में श्री दोसी का साक्षातकार ले रहा था तो विद्या शर्मा को बाहर रोक कर रखा गया था मगर बाद मैं वो किसी तरह अन्दर गया और बेतुका सा सवाल कर डाला की " सुना है की आप इंग्लिश को बहुत बढावा दे रहें हैं " श्री दोसी ने उसे देखा और कहा आपका सवाल अधुरा और बेकार है आप जा सकतें हैंश्री दोसी ने कई सालों तक राजदूत के तौर पर बाहर के देशों में भारत का प्रतिनीधित्व किया था और उनका मिलना और बातें करना किसी के लिए भी बड़ी बात थी। खैर तिलमिला कर विद्या शर्मा बाहर निकले और अपने आकाओं से कहा की दोसी साहब ने आशीष को बहुत डाटा हैसब खुश हुए मैं बाहर आया तो मुझसे व्यंग कर के पूछते हैं की "क्या हुआ भाई मज़ा आया" मैने उनको टेप सुना दिया जो मैने रिकॉर्ड किया था और बोला की वाकई मज़ा आया मैने ज़ंग जीत लिया, अब आपलोग भी सुधर जाएँ . मैं आभारी हूँ दोसी साहब का की उन्होने वास्तविकता को समझा और इस सामाजिक बुराई का अंत किया । इस तरह मजबूरी मैं ही सही सभी भ्रष्टलोग रास्ते पर भी आए और बुरे का अंत भी हुआ हाँ इस दौरानमुझे कई प्रलोभन भी दिए गए मगर मैने जो ठान लिया वो कर के छोडा

गुरुवार, 19 मार्च 2009

निष्पक्ष पत्रकारिता कुर्बानी मांगती है . .

यह पत्रकारिता जीवन मुझे कई अनुभव दे गया और मैने इस छोटी सी उम्र में यह अनुभव किया की निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए कुर्बानी देनी पड़ती हैकई बार ऐसे मौके आए मगर मैं पीछे नही हटा हर चुनौती से टकराता रहाहाँ इसके लिए मुझे बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ीमगर मुझे उसका कोई ग़म नही हैजादूगोड़ा में यू सी आई एल कारखाना है यहाँ यूरेनियम की खदान है और यहाँ पर करीब चार हज़ार मजदूर काम करतें हैंउन्ही में से कुछ लोग अवैध रूप से ब्याज पर रुपया देने का भी काम करते है इसके लिए वो जिस भी मजदूर को रूपया देतें हैं उनका बैंक का पासबुक और चेक बुक बंधक रख लेतें हैं और मनमाना बयाज वसूल करतें हैं तब तक जब तक की क़र्ज़दार कंगाल नही हो जाता यह किसी एक वयक्ति की नही वरन एक सामाजिक समस्या थी मुझे यह ग़लत लगा और मैने तत्कालीन थाना प्रभारी से इस पर अंकुश लगाने के लिए कहा मगर कोई असर नही हुआ तब मेरी समझ में आया की समाज में कोई भी अपराध खुले तौर पर बिना किसी दूसरी शक्ति के वरदहस्त के नही हो सकता है मतलब अपनी पाप की इस कमाई का एक बड़ा हिस्सा यह सूदखोर माफिया पुलिस को भी दिया करते थे मगर मैं भी अड़ गया और मैंने पीड़ित वयक्ति का बयान ले कर सबूत के साथ अखबार में प्रकाशित कर दिया घटना यूँ थी की उस आदमी ने एक सूदखोर माफिया से ब्याज पर एक लाख रुपये लिया था और एक साल के अन्दर कुल एक लाख पचास हज़ार देने के बाद भी वो एक लाख रुपये का देनदार था जब अखबार में समाचार आया तब मजबूरन उस थानेदार को उस सूदखोर माफिया पर कारवाई करनी पड़ी और उस सूदखोर माफिया को जेल भी जाना पड़ा करीब ४० लोगों को जो उसके शिकार थे उसके पंजों से निजात मिली अखबार रिश्वत पर भारी पड़ गया लाजिमी है की मैं उस थानेदार का परम शत्रु बन गया और इसका बदला उसने मुझ पर ४०७ बस चढ़वा कर ले लिया बात/०९/२००० की है में अपने घर के बाहर खड़ा था की तभी एक ४०७ बस ने मुझे धक्का मार दिया मैं संभल पाता तब तक बस मेरे दोनों टांगों पर चढ़ चुकी थी ड्राईवर ने ऐसा दो बार किया मैं हतप्रभ था मगर आश्वस्त भी की मेरा बुरा नही हो सकता मेरा शुरू से परम शक्ति पर अटूट विश्वास रहा है और उसी पर विश्वास करके मैं जब खड़ा हुआ तो पाया की टांग टूट चुकी है चालक को पब्लिक ने पकड़ कर पीटा मगर मेरे पिताजी ने उसे मार से बचा कर पुलिसके हवाले कर दिया थानेदार को मौका मिल गया और उसने मेरे छोटे भाई को जो दसवीं का विद्यार्थी था को ड्राईवरको मारने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया मगर उसी दिन उसकी कोर्ट से उसकी जमानत हो गयी थानेदार कोलगा की अब मेरे पत्रकारिता जीवन का अंत हो गया मगर वो उसकी भूल थी और मेरी सिर्फ़ दायीं टांग की हल्की सी हड्डी टूटी थी मैं ४५ दिनों में बिल्कुल ठीक हो गया बाद में मुझे पता चला की वो घटना उस थानेदार की ही करतूत थी और इसके बाद उस मैने उस थानेदार को ऐसा सबक सिखाया की आज तक वो मुझे भूल नही पाया है । इसके लिए मैं झारखण्ड के तत्कालीन पुलिस महानीदेशकों श्री टी पी सिन्हा और आर आर प्रसाद जी को बहुत धन्यवाद देता हूँ , साथ ही धन्यवाद देता हूं , मेरे मित्रों श्री चंद्रभूषण शर्मा और दीनानाथ त्रिपाठी को जन्होने मुसीबत की उस घड़ी में मेरा साथ निभाया और लोगों को यह एहसास कराया की मैं इस धर्मयूद्ध मैं अकेला नही हूँ

मंगलवार, 17 मार्च 2009

मेरा पत्रकारीता जीवन 2

उसके बाद मेरा सफर अनवरत जारी है अभी मैं साधना न्यूज़ चैनल मैं संवाददाता हूँअपने सहारा समय के छोटे से कार्यकाल मैं मैने शांतनु चक्रवर्ती जैसे लोगों को भी देखा यह वो वयक्ति है जिसने मुझे समाचार बनाने की कला सिखाया नानक सिंह ने मुझे कैमरा की बारीकीओं से अवगत कराया , हाँ जीतेन्द्र प्रसाद सहायक कैमरामेन था काम नही जानता था मगर निर्देश खूब दिया करता था हर रिपोर्टर उससे परेशान रहता था ख़ास कर उसे इस बात की खूब चिंता रहती थी की कोई रिपोर्टर अगर अच्छा काम कर लेगा तो उसका अस्तित्व खतरे मैं जायगाब्यूरो प्रमुख प्रीति जी थी मगर निर्देश वो दिया करता थायही प्रीति जी की कमजोरी थी जो बाद में उनके पतन का कारण बनीमेरा प्रीति जी से १२ साल पहले के रिश्ते थे जब हमलोग एक चिकित्सा पद्धति की क्लास किया करते थे मगर इन चिरकुटों की वजह से उन्हें भी अपना वजूद खतरे में नज़र आने लगा और मैं सभी रिपोरटर जो अच्छा काम कर रहे थे उनकी शामत गयीमैने हमेशा प्रीति जी को बड़ी बहन की तरह सम्मान दिया उन्होने भी मुझे छोटे भाई की तरह स्नेह दिया बस इसीलिए मुझे इस बात का हमेशा बहुत दुःख रहेगा की मेरा उनसे रिश्ता कुछ ऐसे लोगों की वजह से टुटा जो कभी उनके थे ही नही उनके क्या कभी किसी के नही हो सकतेआज भी मैं उनका उतना ही सम्मान करता हूँ और करता रहूँगा मगर साथ ही एक आग्रह भी की पर्सनल रिलेशन कभी किसी भी वजह से प्रोफशनल रिलेशन नही बन सकते और कभी बनाने भी नही चाहीयेइसलिये दीदी कभी फिर से नही किसी के साथ भी .........................नही

सोमवार, 16 मार्च 2009

मेरा पत्रकारीता जीवन 1

२००४ वो समय था जब सहारा समय चैनल का बिहार - झारखण्ड में उदय हो रहा था और करने के लिए सभी के पास बहुत कुछ था मैंने १४ दिसम्बर २००४ को इस चैनल को ज्वाइन कीया था यहाँ मैं एक नाम का उल्लेख करना नही भूल सकता मेरे दोस्त भोला तमारिया का यह वो शख्स है जिससे मैने इलेक्ट्रोनीक मीडिया की बारीकियाँ सीखा हाँ तो १८ तारीख को मैं और भोला जमशेदपुर के मंगलम रेस्टुरेंट मैं बैठे काफी पी रहे थे अचानक मेरे मन मैं एक बात आयी की यार चलो झारखण्ड स्टेट के बारे मैं इन्टरनेट से जानते हैं बस चल पडे कैफे की और साईट लॉग इन किया और देख कर दंग रह गये की झारखण्ड स्टेट डॉट कॉम के नाम से पॉर्न साईट चलायी जा रही थी शूट किया और निकल पडे ख़बर को ब्रैक करने ऑफिस पहुँचा और प्रीती जी को पुरी ख़बर बताई उन्होने शाबाशी दी और ख़बर चैनल पर चलवा दिया यह राष्ट्रिय स्तर की बड़ी ख़बर थी ख़ुद नॉएडा से सुनंदा दीक्षीत जी ने मुझे फोन पर शाबाशी दी. बडे यादगार पल थे वो । फिर मेरी लाइव रिपोर्टिंग हुई नीरद निश्चल जी एंकर थे
मैं खुश था की मेरा बचपन का सपना पुरा हुआ था मैं झारखण्ड के सिंहभूम जिले के पिछडे क्षेत्र जादूगोड़ा का रहने वाला हूँ मैने अपने लगन और परीश्रम से यह सिद्ध कर दिया था की मेहनत और ईमानादारी से कुछ भी करना मुश्किल नही है हाँ इस कामयाबी से जहाँ मेरे मित्र खुश हुए वही विरोधी भी बनते गए । परवाह नही है अच्छा करने की ललक थी है और रहेगी । चैनल मैं एक रिपोर्टर है सुदामा राय मुझे वह व्यक्ति मानसिक अवसाद से ग्रस्त लगता है कयोंकि जब भी मैंने कुछ अच्छा किया उसे खूब जलन हुई ख़ुद कुछ बोलने किया हिम्मत नही थी सो प्रीती जी के कान भरता रहता था उसकी यह आदत अभी तक नही छुटी और यही कारण है की प्रतिभा संपन्न होते हुए भी पत्रकारिता में वह अभी भी अपने वजूद के लिया ज़मीन तलाश रहा है । चीरकुटों की कमी नही है जहाँ भी जाता हूँ एक दो सुदामा रॉय मिल ही जातें हैं । मगर में ऐसे लोगों का धन्यवाद भी करता कयोंकी यही ऐसे लोग हैं जिनकी आलोचना,मुझे अच्छा करके आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं ।