शनिवार, 21 मार्च 2009
मेरे मार्गदर्शक
अपनी सफलता की कहानी मैं मैं उन नायकों को कभी नही भूल सकता जिन्होने मुझे मुसीबतों से लड़ने की प्रेरणा दी और जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा मेरी सहायता करते रहे । डॉक्टर हारुन रशीद खान और वी श्रीनिवास राव यह ऐसे नाम हैं जो मेरी जिंदगी मैं बहुत कम समय के लिए आए मगर कभी न खत्म होने वाला रिश्ता बना गये ।यह दोनों वयक्ति परमाणु उर्जा केंद्रीय विद्यालय जादूगोड़ा के प्राचार्य थे । अनुशासन के पक्के शायद इसलिए तानाशाह के नाम से मशहूर ,मगर उनको तानाशाह कहने वाले लोगों से मैं यह हमेशा पूछता रहूँगा की कोई एक काम बता दें जिससे उन लोगों ने अपना भला किया हों किसी के पास जवाब नही है । साफ़ बात है की एक अच्छा प्रशाषक हमेशा ही बुरा होता है । डाक्टर खान वो पहले शख्श हैं जिन्होने मुझे हमेशा अपने सिद्धांतो के साथ आगे बढ़ना सिखाया और मुझे अनुशासन की वो गूढ़ बातें सिखाई जो आज तक मुझे याद हैं और सम्मान दिला रहें हैं । वी श्रीनिवास राव सर से मेरा परिचय सन २००४ मैं हुआ था वो युवा हैं और धुन के पक्के और काम के प्रति ईमानदार भी जब मैं परेशान होता तो उनके पास पहुँच जाता था और वे सारा काम छोड़कर मेरी समस्या का समाधान करते थे । उन्होने मुझे सिखाया की परेशानी को मेहमान की तरह समझो केओंकी वो आती ही जाने के लिए है केवल अपने लक्ष्य पर नज़र रखो और अपना काम पुरी निष्ठा से करते जाओ बुरे लोग तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ सकते।आज मैं इस सिद्धांत की शक्ति को मानता हूँ । इन दोनों गुरुओं ने कभी मुझे पढाया नही पर आंशिक रूप से जो बातें सिखा दिया वो मेरी शक्ति बन गया । इसके लिए मैं इनका आजीवन ऋणी रहूँगा । इनलोगों ने इस बात की सार्थकता को सिद्ध कर दिया की अनुशाशन ही व्यक्ति और समाज को सफल बनता है ।
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musibato se ladne wala hi insaan hota hai warna to janwar bhi khane kaa intjaam kar lete hai..kyu..sir ji...namshkaar
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