गुरुवार, 19 मार्च 2009

निष्पक्ष पत्रकारिता कुर्बानी मांगती है . .

यह पत्रकारिता जीवन मुझे कई अनुभव दे गया और मैने इस छोटी सी उम्र में यह अनुभव किया की निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए कुर्बानी देनी पड़ती हैकई बार ऐसे मौके आए मगर मैं पीछे नही हटा हर चुनौती से टकराता रहाहाँ इसके लिए मुझे बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ीमगर मुझे उसका कोई ग़म नही हैजादूगोड़ा में यू सी आई एल कारखाना है यहाँ यूरेनियम की खदान है और यहाँ पर करीब चार हज़ार मजदूर काम करतें हैंउन्ही में से कुछ लोग अवैध रूप से ब्याज पर रुपया देने का भी काम करते है इसके लिए वो जिस भी मजदूर को रूपया देतें हैं उनका बैंक का पासबुक और चेक बुक बंधक रख लेतें हैं और मनमाना बयाज वसूल करतें हैं तब तक जब तक की क़र्ज़दार कंगाल नही हो जाता यह किसी एक वयक्ति की नही वरन एक सामाजिक समस्या थी मुझे यह ग़लत लगा और मैने तत्कालीन थाना प्रभारी से इस पर अंकुश लगाने के लिए कहा मगर कोई असर नही हुआ तब मेरी समझ में आया की समाज में कोई भी अपराध खुले तौर पर बिना किसी दूसरी शक्ति के वरदहस्त के नही हो सकता है मतलब अपनी पाप की इस कमाई का एक बड़ा हिस्सा यह सूदखोर माफिया पुलिस को भी दिया करते थे मगर मैं भी अड़ गया और मैंने पीड़ित वयक्ति का बयान ले कर सबूत के साथ अखबार में प्रकाशित कर दिया घटना यूँ थी की उस आदमी ने एक सूदखोर माफिया से ब्याज पर एक लाख रुपये लिया था और एक साल के अन्दर कुल एक लाख पचास हज़ार देने के बाद भी वो एक लाख रुपये का देनदार था जब अखबार में समाचार आया तब मजबूरन उस थानेदार को उस सूदखोर माफिया पर कारवाई करनी पड़ी और उस सूदखोर माफिया को जेल भी जाना पड़ा करीब ४० लोगों को जो उसके शिकार थे उसके पंजों से निजात मिली अखबार रिश्वत पर भारी पड़ गया लाजिमी है की मैं उस थानेदार का परम शत्रु बन गया और इसका बदला उसने मुझ पर ४०७ बस चढ़वा कर ले लिया बात/०९/२००० की है में अपने घर के बाहर खड़ा था की तभी एक ४०७ बस ने मुझे धक्का मार दिया मैं संभल पाता तब तक बस मेरे दोनों टांगों पर चढ़ चुकी थी ड्राईवर ने ऐसा दो बार किया मैं हतप्रभ था मगर आश्वस्त भी की मेरा बुरा नही हो सकता मेरा शुरू से परम शक्ति पर अटूट विश्वास रहा है और उसी पर विश्वास करके मैं जब खड़ा हुआ तो पाया की टांग टूट चुकी है चालक को पब्लिक ने पकड़ कर पीटा मगर मेरे पिताजी ने उसे मार से बचा कर पुलिसके हवाले कर दिया थानेदार को मौका मिल गया और उसने मेरे छोटे भाई को जो दसवीं का विद्यार्थी था को ड्राईवरको मारने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया मगर उसी दिन उसकी कोर्ट से उसकी जमानत हो गयी थानेदार कोलगा की अब मेरे पत्रकारिता जीवन का अंत हो गया मगर वो उसकी भूल थी और मेरी सिर्फ़ दायीं टांग की हल्की सी हड्डी टूटी थी मैं ४५ दिनों में बिल्कुल ठीक हो गया बाद में मुझे पता चला की वो घटना उस थानेदार की ही करतूत थी और इसके बाद उस मैने उस थानेदार को ऐसा सबक सिखाया की आज तक वो मुझे भूल नही पाया है । इसके लिए मैं झारखण्ड के तत्कालीन पुलिस महानीदेशकों श्री टी पी सिन्हा और आर आर प्रसाद जी को बहुत धन्यवाद देता हूँ , साथ ही धन्यवाद देता हूं , मेरे मित्रों श्री चंद्रभूषण शर्मा और दीनानाथ त्रिपाठी को जन्होने मुसीबत की उस घड़ी में मेरा साथ निभाया और लोगों को यह एहसास कराया की मैं इस धर्मयूद्ध मैं अकेला नही हूँ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें