बुधवार, 25 मार्च 2009

जमशेदपुर पुलिस का वीभत्स चेहरा

कल रात जमशेदपुर पुलिस के आरक्षी उपाधीक्षक तेजवान उराँव और पुलिस के सीपाहीओं ने जमशेदपुर के पुराने अखबारों में एक चमकता आइना के संपादक ब्रजभूसन सिंह के साथ मारपीट और लूटपाट किया इससे पुलिस का वीभत्स चेहरा खुल कर सामने गया है मीडिया वालों के साथ पुलिस का यह सलूक है तो आम जनता का क्या हाल होता होगा बोलने की ज़रूरत नही है पुलिस शब्द का मतलब होता है पुरुषार्थयुक्त , लिप्सराहीत , सेवक मगर ऐसे भ्रस्थ पुलिसवालों ने पुलिस शब्द के मायने ही बदल दियां हैं इस पर भी पुलिस अधीक्षक की खामोशी गले नही उतरती निष्पक्ष पत्रकारिता कुर्बानी. मांगती है मैने पुलिस अपराधी गठबंधनके बहुत अत्याचार सहे हैं इसलिए यह बात बड़ी बेबाकी से कह सकता हूँ असल में पुलिस अत्याचार को रोकने के लिए कोई माकूल कानून ही नही बना है अगर कोई पुलिस वाला आप पर अत्याचार करता है तो आप एस पी को शिकायत करेंगे और उसकी जांच कोई कनीय पुलिस अधिकारी करेगा और अत्याचार करने वाला साफ़ बच जायगा यह होता रहा है और होता रहेगा जबकि होना यह चाहीये की जांच रिपोर्ट आने के बाद उसके तकनीकी पहलुओं को देख कर के निष्कर्ष निकला जाए और यदि अधिकारी दोषी पाया जाए तो उस पर अपराध के हिसाब से कानूनी धाराओं के तहत प्राथमीकी दर्ज की जाए देखिये पुलिस जुल्म कैसे नही कम होगा , कानून का शिकंजा जब कसता है तो अच्छे -अच्छे सुधर जातें हैं। झारखण्ड को ज़रूरत है प्रकाश सिंह जैसे डी जी पी की फिर देखिए पुरा तंत्र कैसे सुधरता है जब एक शिक्षित आदमी पुलिस के हाथों तंग होता है तो उसके खिलाफ अपनी लड़ाई कलम के माध्यम से लड़ता है मगर गरीब और कम पढ़ा लिखा लाचार आदमी अपराध का रास्ता अख्त्यार करलेता है मुझे यह कहने में कोई संकोच नही की पुलिस जुल्म भी एक कारण है जिसके कारण अपराधी जन्म लेतें हैं महज़ कुछ रुपयों के लिए यह पुलिस वाले आम आदमी को किस तरह तंग करतें हैं झूठे मुकदमों में फसाते हैं यह मुझसे ज़यादा कौन जान सकता है ? पुरी व्यवस्था कुरुछेत्र है और ज़रूरत है फिर से एक कृषण की, नए युग की स्थापना की मैं जानता हूँ की ब्रजभूसन सिंह पर किया गया यह हमला पुलिस माफिया गठबंधन की हीकरतूत है मगर साथ ही यह भी जानता हूँ की उनको कोई भी शक्ति अपने कर्तव्य पथ से नही हटा सकती मुझे उनपर गर्व है और सारे पत्रकारिता जगत को होना चाहिए इस हमला ने एक बार फिर कलम की ताकत को सिद्ध किया है मैं यह जानता हूँ की उनकी तारीफ बहुत से लोगों को अच्छी नही लग रही होगी मगर मुझे कड़वा सच बोलने की आदत है अपने को रोक नही पाता अभी परीक्षा की घड़ी है केओंकी यह पूरे पत्रकारिता जगत पर हमला है इसलिए हर पत्रकार को चाहिये की आपसी मतभेद भुला कर अपनी ताकत का इन लोगों का एहसास करा दे। केओंकी अब देश आज़ाद है और पुलिस जनता की नौकर है , उसे अपनी औकात का एहसास करना ही होगा

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