शुक्रवार, 20 मार्च 2009

निष्पक्ष पत्रकारिता एक धर्मयुद्ध है सामाजिक समस्या के खिलाफ

निष्पक्ष पत्रकारिता एक धर्मयुद्ध की तरह है जो मजबूत संकल्प के हथियार से लड़ा जाता है मैने तो अपने कार्य के इस छोटे से कालखंड मैं यही अनुभव किया है केओंकी मैं बहुत धनी वयक्ति नही था मगर मेरे पास आत्मविश्वास है और वही मेरा हथियार भी धर्मयुद्ध मैं व्यक्ती हमेशा अकेला ही होता है और उसका साथी सिर्फ़ एक होता है वही शक्ति जो इस संसार को चला रही है यह मैं नही कह रहा हूँ समय और युगों ने इस बात को हमेशा ही सिद्ध किया है महाभारत की ही बात ले लीजिये पांडवों के पास क्या था द्रीढ़ संकल्प और भगवान श्री कृषण और उन्होने इतना बड़ा महासमर जीत लिया। यह बातें मुझे अक्सर श्री नीतीश भारद्द्वाज़ जी कहा करते थे जब वे जमशेदपुर के सांसद हुआ करते थे और उनके जमशेदपुर प्रवास पर मैं उनके पास जाया करता था पता नही क्या कारण था की वो मुझे बहुत स्नेह देते थे वाकई वो विद्द्वान वयक्ति हैं मैं इस बात को मानता हूँ केओंकी श्रीमद भगवत गीता की अधिकतर बातें मैने उन्ही से सुना और अपने जीवन उतारा जो मेरी सफलता का कारण बना मेरी पत्रकारिता का उद्देश्य कभी किसी को नुकसान पहुचना नही रहा बल्कि मैने यही चाहा की मैं जिस बुराई को प्रकाश मैं ला रहा हूँ वो खत्म हो जाए और बुराई फेलाने वाले सही रास्ते पर जाएँ कई बार मुझे सफलता मिली एक घटना का उदाहरण मैं यहाँ दे रहा हूँ :- जादूगोड़ा मैं एक विद्यालय है परमाणु उर्जा केंद्रीय विद्यालय जो यूरेनियम कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड द्वारा संचालित किया जाता है जिसमे केवल कंपनी कर्मचारी और अधिकारी के बच्चे ही पढ़ते हैं। इस स्कूल में सन १९९६ में टयूशन की प्रथा बड़ी जोर शोर से चल रही थी यह सब चलाया जा रहा था तत्कालीन प्राचार्य पुजारी दुबे के वरदहस्त से केओकी शिक्षक बच्चों पर ज़ोर डाल कर जबरदस्ती उनको अपने यहाँ टयूशन पढ़ने के लिए बुलाते थे और मोटी रकम वसूल करते थे कुल कमाई थी २२ लाख रुपए और इसका हिस्सा प्राचार्य महोदय को भी जाता था कोई था नही जो इस अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठता यहाँ तक की शोषित होने वाले छात्र- छात्राओं के माता पिता भी नही और मैने एक और पंगा ले लिया मैने एक बार टयूशन से सम्बंधित एक समाचार आवाज़ समाचार पत्र में टयूशन प्रकाशीत कर दिया बस क्या था भूचाल गया केओंकी जादूगोड़ा में दो चिरकूट हैं बिद्या शर्मा और अरुण सिंह ख़ुद को पत्रकार बोलते हैं मगर ज्यादा समय थाना की मुखबीरी और असामाजिक अराज़क तत्वों की चमचागीरी में बीतातें हैं इन लोगों ने शिक्षकों को आश्वस्त कर रखा था की कोई भी अखबार इनके खिलाफ समाचार नही प्रकाशीत करेगा इसके लिए वे शिक्षकों से एक निश्चित रकम लिया करते थे मगर जब समाचार अखबार मैं गया तो लाजिमी था की उनके आका नाराज़ हुए अरुण सिंह को मुझे सबक सिखाने का ज़िम्मा दिया गया और उसने किसी तरह आवाज़ अखबार में नौकरी पकड़ लिया और फिर उसने कई बार मेरे समाचार को रोकने का प्रयास किया मगर कहतें हैं की सच को दबाया जा नहीं सकता वही हुआ वो जितना मेरी बुराई करता संपादक महोदय मुझे उतना ही प्रोत्साहीत करते अंततः मैने अपने उसे औकात का एहसास करा ही दिया और फिर उसे आवाज़ अखबार ने निकाल दिया यह मेरी जीत थी . १९९९ में परमाणु उर्जा शिक्षा संस्थान मुंबई के अद्ध्यक्ष किरण दोसी जादूगोड़ा आए और मैने उनसे साक्षात्कार के दौरान सारी बातें भी कही और उन्होने तत्काल टयूशन को प्रतिबंधित कर दिया सामाजिक बुराई के खिलाफ यह मेरी सबसे बड़ी जीत थी मेरे विरोधिओं ने भी मेरी तारीफ किया इस वाकये मैं मजे की बात यह हुई जब में श्री दोसी का साक्षातकार ले रहा था तो विद्या शर्मा को बाहर रोक कर रखा गया था मगर बाद मैं वो किसी तरह अन्दर गया और बेतुका सा सवाल कर डाला की " सुना है की आप इंग्लिश को बहुत बढावा दे रहें हैं " श्री दोसी ने उसे देखा और कहा आपका सवाल अधुरा और बेकार है आप जा सकतें हैंश्री दोसी ने कई सालों तक राजदूत के तौर पर बाहर के देशों में भारत का प्रतिनीधित्व किया था और उनका मिलना और बातें करना किसी के लिए भी बड़ी बात थी। खैर तिलमिला कर विद्या शर्मा बाहर निकले और अपने आकाओं से कहा की दोसी साहब ने आशीष को बहुत डाटा हैसब खुश हुए मैं बाहर आया तो मुझसे व्यंग कर के पूछते हैं की "क्या हुआ भाई मज़ा आया" मैने उनको टेप सुना दिया जो मैने रिकॉर्ड किया था और बोला की वाकई मज़ा आया मैने ज़ंग जीत लिया, अब आपलोग भी सुधर जाएँ . मैं आभारी हूँ दोसी साहब का की उन्होने वास्तविकता को समझा और इस सामाजिक बुराई का अंत किया । इस तरह मजबूरी मैं ही सही सभी भ्रष्टलोग रास्ते पर भी आए और बुरे का अंत भी हुआ हाँ इस दौरानमुझे कई प्रलोभन भी दिए गए मगर मैने जो ठान लिया वो कर के छोडा

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