रविवार, 22 मार्च 2009
मेरे पसंदीदा आई . पी . एस. अधिकारी श्री रविन्द्र कुमार और परवेज हयात
निष्पक्ष पत्रकारीता के इस महासंग्राम की शुरुआत मेरे पिताजी ने सन १९९० में किया था । पुलिस ओर अपराधी गठजोड़ के ख़िलाफ़ । मिथिला बिहारी शुक्ला एक दरोगा हुआ करता था । उसने पुलिस की वर्दी पहनी ही थी नाज़याज़ कमाई करने और शरीफ लोगों को परेशान करने के लिए । मीडिया का उस समय जादूगोड़ा में कोई प्रभाव नही था और वैसे भी जादूगोड़ा मुर्दों की बस्ती है । उस नामाकुल दरोगा का हर दुकानदार से उसकी कमाई का ३ प्रतिशत की रंगदारी बंधी हुई थी क्या मजाल की कोई कुछ बोल दे हाज़त में बंद कर के बहुत मारता था । मेरे पिताजी से भी हराम की कमाई करना चाहा पिताजी ने उसके फरमान को ठुकरा दिया । बस शुरू हुआ गुंडों के साथ परेशान करने का सिलसिला अति हो गयी पिताजी को लगा की अब इसके अत्याचार का अंत करना चाहिए । बस उदितवाणी अखबार के मध्याम से उसकी काली करतूतों को प्रकाश में लाना शुरू किया । ६ महीने में जनाब कई बार लाइन हाज़िर हुआ और फिर उसके अत्याचार से परेशान जादूगोड़ा के डोरकासाईँ गावों के लोगों ने उसकी बेटी पत्नी और भाई के साथ शुक्ला की जम कर पिटाई कर दी । इस दारोगा को उसकी करतूतों की सजा तात्कालीन आई पी एस अधिकारी श्री रविन्द्र कुमार ने दिया वो उस समय जमशेदपुर के एस पी थे मैं दिल से उनका धन्यवाद करता हूँ वो जब तक जमशेदपुर में रहे गरीबों को पुलिस से डर नही लगा । मेरे दुसरे पसंदीदा आई पी एस अधिकारी हैं श्री परवेज़ हयात साहब जिन्होने जमशेदपुर को अपराधमुक्त करने में अहम् भूमिका निभाया हाँ उनपर चंद स्वार्थी तत्वों ने जातिवाद का आरोप लगाया मगर मैं उस बात को नही मानता केओंकी मैं जानता हूँ की अच्छे काम करने पर स्वार्थी तत्वों को तकलीफ तो होती ही है वो मेरा खूब उत्साह बढाते थे । मुझे याद है की जादूगोड़ा थाना का एक मुंशी जिसका नाम एम् एम् आलम था एक बार किसी से ५०/- रुपये की रिश्वत मांग लिया था संयोग से हयात साहब जादूगोड़ा एक कार्यक्रम मैं आए हुए थे उन्हें पता चला और उन्होने ख़ुद जांच कर तुंरत उस मुंशी को लाइन हाज़िर कर दिया । पत्रकारों ने भी उनके कार्यकाल में बहुत सम्मान पाया । वज़ह उनकी निष्पक्ष कार्यशैली रही , जिसका मैं कायल हूँ और हर आदमी को होना चाहिए । आज इन दोनों अधिकारीओं ने अपने काम की बदौलत अपनी अलग पहचान बनाई है ।
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